Guru Gobind Singh Jayanti Poem in Hindi – गुरु गोबिंद सिंह कविता
Guru Gobind Singh Jayanti Poem in Hindi – गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म सन् 5 जनवरी 1666 (विक्रम संवत 1727) को बिहार के पाटलिपुत्र (पटना) में हुआ था, गुरु गोविंद सिंह जी को बचपन में गोबिंद राय नाम से पुकारा जाता था, उनके जन्म के बाद वह पटना में 4 वर्ष तक रहे इनके पिता जी का नाम गुरु तेगबहादुर सिंह था जो सिखों के नवें गुरु थे तथा इनकी माता जी का नाम गुजरी था, उनकी जयंती सिख धर्म लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी और सिख धर्म के लोगों को कई सकारात्मक बातें सिखाई थी। वह एक महान आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, दार्शनिक, और कवि थे |
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Contents गुरू गोबिन्द सिंह जी की प्रसिद्ध रचनाएँ |

महापुत्र वे महापिता वे, राष्ट्रभक्त समदर्शी थे। ‘पंथ खालसा’ के निर्माता, अनुपम संत सिपाही थे। मुगलों संग युद्धों में जो, संत वही, वही योद्धा, |
Guru Gobind Singh Ji Poem in Hindi |
वाहे गुरु का आशीष सदा मिले, ऐसी है कामना मेरी!! गुरु की कृपा से आएगी, घर-घर में खुशहाली!! गुरु गोविंद सिंह जयंती की बधाइयां गुरु गोविन्द सिंह जी के सद्कर्महमे सदा दिखाएँगे राह, सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ, |
Poems on Guru Gobind Singh Ji in Hindi |
जिस दम हुए चमकौर में सिंहों के उतारे । झल्लाए हुए शेर थे सब ग़ैज़ के मारे । आंखों से निकलते थे दिलेरों के शरारे । सतिगुर के सिवा और ग़ज़बनाक थे सारे । गुस्से से नज़र जाती थी अफवाज-ए-अदू पर । तेग़े से निगाह पड़ती थी दुश्मन के गलू पर । (ग़ैज़=गुस्सा, शरारे=शोले, ग़ज़बनाक= गुस्से से भरे, अफवाज-ए-अदू=दुश्मन की सेना) |
Short Poem Guru Gobindh Singh Jayanti |
सर पर मेरे हैं गुरुवर का हाथ, है हरपल हरदम वो मेरे साथ, है विश्वास वही राह दिखायेंगे, मेरे सारे बिगड़े काम बन जायेंगे, गुरु गोविन्द सिंह जयंती की हार्दिक शुभकामनाए ! सवा लाख से एक लड़ाऊं, |
Guru Gobind Singh Ji Kavita |
फूल मिले कभी शूल मिले, प्रतिकूल, उन्हें हर मार्ग मिले। फिर भी चलने की ठानी थी, मुगलों से हार न मानी थी। नवें गुरु, पिता तेगबहादुर, नवें वर्ष में, गुरूपद पाकर, ज्ञान भक्ति, वैराग्य समर्पण, धर्म की खातिर, खोए पिता को, मन मंदिर हो, कर्म हो पूजा, |
Guru Gobindh Singh Jayanti Poem in Punjabi Language |
ਘੁਟਾਲਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਹਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਧੋਖਾ ਦਿੱਤਾ। ਧਾਰਮਿਕ ਧਰਮ, ਧਰਮ ਅਤੇ ਧਰਮ. ਜਦੋਂ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਕਿਹਾ ਗਿਆ, ਅਹਿਸਨ-ਸ਼ਿਕਨ ਨੇ ਦਿੱਤਾ. ਪਰੀਖਿਆ ਦੀ ਖਾਈ ਬੜੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਹੈ. ਉਹ ਇੱਕ ਲਹਿਰ ਜਾਂ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਪਏ ਸਨ. ਇਹ ਮੱਥੇ ਉੱਤੇ ਪਸੀਨਾ ਸੀ ਜਾਂ ਇਹ ਜੰਗਲੀ bਸ਼ਧ ਸੀ. (ਪਾਈਮਨ-ਝੁਰੜੀਆਂ = ਵਾਅਦਾ ਤੋੜਨ ਵਾਲੇ, ਜੂਲ = ਠੱਗ, ਚਿਨ-ਦਰ-ਜਬੀ = ਮੱਥੇ ਉਤੇ ਜ਼ੋਰ, ਅਫਸ਼ਾਨ = ਤੁਪਕੇ) |
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